दोष देना बंद करें: आपकी ज़िंदगी की बागडोर आपके ही हाथ में है

हममें से ज़्यादातर लोग ज़िंदगी में अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं — कभी लोगों को, कभी भाग्य या ग्रहों को, कभी भगवान को, तो कभी हालात को। ऐसा करना आसान लगता है, क्योंकि इससे हमें थोड़ी देर के लिए सुकून मिलता है। लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक हम अपनी असफलताओं की असली वजह खुद को नहीं मानते, तब तक हम अपने जीवन की बागडोर दूसरों के हाथ में छोड़ देते हैं। और जब तक हम अपनी ज़िम्मेदारी नहीं लेते, सफलता हमारे पास नहीं आती।

sidharth

11/2/20251 min read

दोष देना बंद करें: आपकी ज़िंदगी की बागडोर आपके ही हाथ में है

हममें से ज़्यादातर लोग ज़िंदगी में अपनी असफलताओं के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराते हैं — कभी लोगों को, कभी भाग्य या ग्रहों को, कभी भगवान को, तो कभी हालात को। ऐसा करना आसान लगता है, क्योंकि इससे हमें थोड़ी देर के लिए सुकून मिलता है। लेकिन सच्चाई यह है कि जब तक हम अपनी असफलताओं की असली वजह खुद को नहीं मानते, तब तक हम अपने जीवन की बागडोर दूसरों के हाथ में छोड़ देते हैं। और जब तक हम अपनी ज़िम्मेदारी नहीं लेते, सफलता हमारे पास नहीं आती। हम ज़िंदगी में असफल होते ही किसी न किसी को दोष देने लगते हैं — कभी माता-पिता को, कभी शिक्षकों को, कभी समाज या भाग्य को, और कभी भगवान को। यह एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है, लेकिन सच्चाई यह है कि इन सबमें से कोई भी हमारी असफलता का असली कारण नहीं होता। आइए इसे तर्क के साथ समझें।

1. माता-पिता (Parents)

माता-पिता हमारे जीवन की शुरुआती नींव रखते हैं। वे हमें मूल्य, संस्कार और जीवन का पहला अनुभव देते हैं। लेकिन एक उम्र के बाद हमारी चॉइस और निर्णय उनसे ज़्यादा प्रभावशाली हो जाते हैं।
कई लोग कहते हैं, “मेरे माता-पिता ने मेरा साथ नहीं दिया।” हो सकता है, लेकिन फिर भी दुनिया में असंख्य उदाहरण हैं — जैसे डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम — जिन्होंने सीमित साधनों के बावजूद महान सफलता पाई।
माता-पिता की कमी को दोष देने से कुछ नहीं बदलता। सच्चा विकास तब शुरू होता है जब हम कहते हैं, “शायद वे और नहीं दे सके, लेकिन अब ज़िम्मेदारी मेरी है।”

2. शिक्षक (Teachers)

एक अच्छा शिक्षक प्रेरणा दे सकता है, पर पढ़ाई आपके बजाय वह नहीं कर सकता। उसी कक्षा में कुछ विद्यार्थी उत्कृष्ट परिणाम लाते हैं और कुछ असफल होते हैं — जबकि शिक्षक तो एक ही होता है। फर्क छात्रों की मानसिकता में होता है।
शिक्षक दिशा दिखा सकता है, पर चलना आपको ही होता है। इसलिए असफलता के लिए शिक्षक को दोष देना वैसा ही है जैसे जीपीएस को दोष देना जबकि रास्ता आपने खुद गलत चुना हो।

3. रिश्तेदार, दोस्त और समाज (Relatives, Friends, or Society)

समाज हमेशा कुछ न कुछ कहेगा — यह उसका काम है। कुछ लोग हतोत्साहित करेंगे, कुछ मज़ाक उड़ाएंगे, कुछ तुलना करेंगे। लेकिन असली फर्क इस बात से पड़ता है कि आप उनकी बातों पर विश्वास करते हैं या खुद पर विश्वास रखते हैं
हर सफल व्यक्ति ने कभी न कभी समाज के विरोध या संदेह का सामना किया है। लेकिन उन्होंने ठहरने के बजाय आगे बढ़ना चुना।
समाज आपको नहीं रोकता — आपका समाज का डर आपको रोकता है। जब आप दूसरों की राय से ऊपर उठ जाते हैं, तब असली स्वतंत्रता मिलती है।

4. भाग्य / किस्मत (Fate / Luck)

किस्मत का अस्तित्व नकारा नहीं जा सकता, पर यह नियंत्रित नहीं की जा सकती। यह हवा की तरह है — कभी आपके पक्ष में बहती है, कभी विपरीत। लेकिन अगर आप नौकायन (sailing) जानते हैं, तो हवा कैसी भी हो, आप दिशा बदलकर मंज़िल तक पहुँच सकते हैं।
किस्मत अवसर दे सकती है, लेकिन उसे सफलता में बदलना मेहनत का काम है। जो व्यक्ति तैयार रहता है, वही “भाग्यशाली” कहलाता है।

5. भगवान (God)

बहुत से लोग कहते हैं, “शायद भगवान नहीं चाहते थे कि ऐसा हो।” पर यदि भगवान ने हमें बुद्धि, इच्छा-शक्ति और निर्णय की स्वतंत्रता दी है, तो इसका मतलब है कि हमें उनका प्रयोग भी करना चाहिए।
भगवान को दोष देना ज़िम्मेदारी से भागने जैसा है। कल्पना कीजिए कोई व्यक्ति बीज ही न बोए और फिर फसल के लिए प्रार्थना करे — यह आस्था नहीं, भ्रम है।
सच्ची श्रद्धा यह कहती है, “मैं अपनी पूरी कोशिश करूंगा, और बाकी ईश्वर पर छोड़ दूंगा।”

1. माता-पिता आपको दिशा देते हैं।
2. शिक्षक आपको ज्ञान देते हैं।
3. समाज आपको परखता है।
4. किस्मत आपको अवसर देती है।
5. भगवान आपको शक्ति देते हैं।
लेकिन निर्णय और कर्म — ये सिर्फ आपके हैं।

जब तक आप असफलता का कारण दूसरों में खोजते रहेंगे, आप शक्तिहीन बने रहेंगे। जिस दिन आप कहेंगे, “कारण मुझमें है — और समाधान भी,” उसी दिन सफलता का असली सफर शुरू होगा।

वास्तविक विकास उसी दिन शुरू होता है, जब हम दूसरों को दोष देना बंद करते हैं और अपने भीतर झाँकना शुरू करते हैं। यह साहस की बात है — खुद से यह पूछने की कि इस असफलता में मेरी क्या भूमिका थी? यह आत्म-आलोचना नहीं, बल्कि आत्म-जागरूकता है। हमारी हर गलती में एक सबक छिपा होता है, लेकिन उसे वही व्यक्ति समझ सकता है जो अपनी गलती स्वीकार करने की हिम्मत रखता है।

ज़िम्मेदारी लेना अपराधबोध नहीं है। इसका मतलब है यह मानना कि हमारे निर्णय, हमारे परिणाम तय करते हैं। जिस पल हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हमारे जीवन की दिशा हमारे ही चुनावों से बनती है, उसी पल हम चमत्कार की प्रतीक्षा करना छोड़कर उन्हें खुद बनाना शुरू कर देते हैं।

जब हम दूसरों को दोष देते हैं, तो हम अपनी शक्ति उनके हाथों में दे देते हैं। हम कहते हैं, मैं इसलिए असफल हुआ क्योंकि उन्होंने मुझे रोका।” लेकिन जब हम ज़िम्मेदारी लेते हैं, तो शक्ति वापस हमारे पास आती है। हम कहते हैं, “अगर यह समस्या मैंने बनाई है, तो इसका समाधान भी मैं ही कर सकता हूँ।” यही सोच आत्मविश्वास की जड़ है — यही सच्चे विकास की शुरुआत है।

विकास के लिए चिंतन ज़रूरी है। चिंतन पछतावा नहीं है, बल्कि समझ है। खुद से पूछिए: “मैं और क्या कर सकता था? मेरी असफलता की असली वजह क्या थी?” शायद डर था, आलस्य था, या ध्यान की कमी थी। जब आप असली कारण पहचान लेते हैं, तभी आप उसे बदल सकते हैं। विकास किस्मत से नहीं, बल्कि समझ और सुधार से आता है।

चाहे आध्यात्मिक परंपराएँ हों या आधुनिक मनोविज्ञान — दोनों कहते हैं कि आपका बाहरी संसार, आपके भीतर के संसार का प्रतिबिंब होता है। अगर मन में गुस्सा है, तो दुनिया लड़ाई जैसी लगेगी। अगर मन में डर है, तो हर चुनौती खतरे जैसी लगेगी। लेकिन अगर मन शांत और आत्मविश्वासी है, तो वही परिस्थितियाँ अवसर बन जाती हैं। इसीलिए असली परिवर्तन हमेशा मन से शुरू होता है।

सच तो यह है कि खुद को अपनी असफलताओं का कारण मानना आसान नहीं होता। अहंकार इसे स्वीकार नहीं करना चाहता। लेकिन यही असहजता परिपक्वता की शुरुआत है। जब आप अपनी गलतियों से भागना बंद करते हैं और उनसे सीखना शुरू करते हैं, तो असफलताएँ आपको तोड़ने के बजाय दिशा देने लगती हैं।

अंततः, सफलता किसी परफ़ेक्ट परिस्थिति या भाग्य का खेल नहीं है। यह ईमानदारी और साहस के साथ अपने जीवन की ज़िम्मेदारी लेने की कला है। असली विकास तब शुरू होता है जब हम दूसरों को दोष देना छोड़कर खुद से बेहतर सवाल पूछना शुरू करते हैं। क्योंकि जो कुछ भी आप खोज रहे हैं — शांति, उद्देश्य या सफलता — वह बाहर नहीं, आपके भीतर है। दुनिया नहीं, आपका मन बदले तो जीवन बदल जाता है।